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{{KKRachna
|रचनाकार=राजू सारसर ‘राज’संजय आचार्य वरुण
|अनुवादक=
|संग्रह=म्हारै पांती रा सुपना मुट्ठी भर उजियाळौ / राजू सारसर ‘राज’संजय आचार्य वरुण
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<poem>
घुप्प अंधारै में
डूब्यो एक सैर
ताकतौ उम्मीद सूं
आभै खांनी
सोधतो
आपरै खातर
कोई सूरज।
बाबा आदम रै जुग री
बूढ़ी इमारतां री
भींत्यां री सेर्यां में
ऊग्योड़ा
आक रा पौधा
अडीकै भींत्यां रै
और फाटण ने।
निजर बचाय
खिसकणै री फिराक में
चंदरमा
देय जावे
मुट्ठी भर उजियाळौ।
अचाणचक
चुंधियाय जावै
अंधारै सैर री आँख्यां
हड़बड़ा जावै
सूरज सूरज करतौ सैर।
</poem>