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{{KKRachna
|रचनाकार=राजू सारसर ‘राज’संजय आचार्य वरुण
|अनुवादक=
|संग्रह=म्हारै पांती रा सुपना मुट्ठी भर उजियाळौ / राजू सारसर ‘राज’संजय आचार्य वरुण
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<poem>
तू एक आकास हौ
मतलब आभौ
घणौ लाम्बौ चवड़ौ
अणूतो फैलाव लियोड़ौ
जठीनै देखां
बठीनै तू, फगत तू
म्हैं थनै देख देख’र
करतौ अचूम्भौ
आज भी हुवै
घणौ इचरज
के इतरी बडी चीज ने
बणावण आळौ
आप कितरौ बडौ हुसी
कुण जाणें?
</poem>