Changes

{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=राजू सारसर ‘राज’संजय आचार्य वरुण
|अनुवादक=
|संग्रह=म्हारै पांती रा सुपना मुट्ठी भर उजियाळौ / राजू सारसर ‘राज’संजय आचार्य वरुण
}}
{{KKCatKavita}}
{{KKCatRajasthaniRachna}}
<poem>
हेत किणी रौ
बण के पाणी
आँख्यां सूं छळकै।
नैणां रा सुपना
मुरझावै
जागै रात्यां
नींद न आवै
याद किणी री
आँसूं बण के
आँख्यां सूं छळकै।
दुखतौ मन अर
थकती काया
बीत्या दिन क्यूं
फेर न आया
बात किणी री
बण के पाणी
आँख्यां सूं छाळकै।
सरणाटौ सब
ओर लखावै
मन ने कोई
चीज न भावै
दूर किणी सूं
हिवणै रौ दुख
आँख्यां सूं छळकै।
</poem>
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader
8,152
edits