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|संग्रह=सूको ताळ / वासु आचार्य
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<poem>
लारलै-लाम्बै बगत सूं पेड़
हर्यौ भर्यौ हुवता थकां भी
मांय रो मांय पीळौ हुय‘र
खिरण लागग्यौ है
बी कैयौ

पेड़ जिण नै लगायौ थौ बापू
घणी उमग अर उछाव सागै
सींचती थी - मां
धौय मांज साफ
ताम्बै रै कळसियै मांय
कितरी आस्था बिस्वास रै
निरमल पवित्तर जळ सूं

पेड़-जिणरै पत्तां नै
चंदण कुंकुं सूं पूज
मौळी रो डोरो पैरावती थी
बड़ी बै‘न
कैवतौ रैयौ बो
पेड़‘ई नी थौ हर्यौ भरयौ
घर भी लै‘रावतौ थौ
अर मन भी
बी सूं ताजगी लैय‘र

अबै जद कि
बापू नी है
मां भी नीं रैई
बड़ी बै‘न गई आपरै घरां

अर अबै पेड़ नै
फालतू अकैकारौ जाण
सैंग भाई

बीनै घर रै आगै री
पट्टै री जमीन माथै
अेक कब्जौ
समझण लागग्या

म्हैं सोच्यौ
जकै दिन झरैला पेड़
पूरौ पीळौ हुय‘र

क्या खाली पेड़‘ई झरसी ?
</poem>
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