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05:15, 27 फ़रवरी 2015 {{KKGlobal}}
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रंग बिरंगा
उजास अर अंधारा सूं
गुथमगुथ हुवती आत्मा
रगत रो
अेक टोपो टपकै बिना
लौवुलुवाण हुयौड़ै सरीर नै
ढौवै है रात दिन दिन रात
समधां री नस नस मांय
चमकता तीखा काकरा
दीखै दूर सूं पाणी री लै‘रा
नीं ठा क्यूं
जंगळ मांय तिरसा मरतौ
भागतौ न्हांसतौ
फंफैजियौड़ौ हिरणियौ
रै रै‘र आवतौ रै
म्हारी चैतणां मांय
तो क्या
छोड़ दूं जौवणौ
सूका कुवां मांय पाणी
मीठौ पाणी
जका कदै बुझावता हां
ठैठ उण्डै ताई
मानखै री तिस
मिनखाचारै री उण्डी प्यास
तो क्या बदळतै
आज रै बगत सागै
बासती दम घौटती हवा
नीं हुवैली पाछी
मधरी मैहकदार पून
तो क्या नीं मिटैला
आज रे नकली उजाळै मांय
बधतो अंधारो
सुकड़तै आदमी रै
भैळै हुवतै हियै जियै
कदतांई चालैला
आ गुथमगुथ
कदतांई ढौवणौ पड़सी
रगत रो
अेक टोपो टपकै बिना
लौवुलुवाण सरीर नै
कदतांई हे ! ईस्वर ?
</poem>
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