983 bytes added,
05:16, 27 फ़रवरी 2015 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=
|संग्रह=
}}
{{KKCatKavita}}
{{KKCatRajasthaniRachna}}
<poem>
म्हारै आसै पासै
दळदळ है तो
कळझळ भी है
सूल अर कांटा है तो
फूल अर फळ भी है
कैयौ धरती अकास नै
म्हारै आसैपासै
नीं तो हड़बड़ाट है
नीं कीं उच्चाट है
अेक आखूट लाम्बी स्यान्ति
नीं कोई सुवाद
नीं कोई सुपनो
अेक अनोखो-अणदीठ आणन्द
बौल्यौ पाछौ धरती सूं
पडूत्तर मांय अकास
अर अठीनै म्हैं
मौव अर निरमौव रै
मईन जाळै बिचाळै
कदै बणू धरती
कदै अकास
</poem>
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader