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05:27, 27 फ़रवरी 2015 {{KKGlobal}}
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घणी ....दूर सूं-गूँज गूँज आई
कानां रै असवाड़ै पसवाड़ै
परभाती री-मधरी मधरी धुण
अळसायै-अळसायै
खोल दी आँख्यां
खर्राटा भरतै जंगळ
जागग्यौ-सूतौ जंगळ
झिलमिलायै
नीलै ताळ रै तळे
अँजळीभर-रगतबरण
सौनलियो पुसब
खिलखिलाई-ठंडी मधरी पून
बैयगी फुदकती
चिड़कली ज्यूं
हरहराया-हिलौरा सूं
हर्भर्या पेड़
थिरकण लागग्या
लैर‘दार लैरिया-कैसरियां धौरा
न्हांयलियौ रूं रूं
लै‘र लै‘र लैरावती
गंगारी लैर्या सागै
लै‘र लैर‘....
लै‘र लै‘र...
आज रौ दनुगौ
</poem>
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