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<poem>
बाल सोना तोहि मैं पालेउं घिउ गुर दार चबाय
मइके केर संदेशवा दे ससुरे पहुंचाय
मैं तो आह्यों बन कै पन्छी नहि जानउं बोलइं बतायं
पठइ देउ तुम मन्नुख का करैं मुखागर बात
ना मोरे ढीमर बारी ना मोरे लगे कहार
तै तो आहे बन कै पंछी उड़ि आवत उड़ि जात
जाय लिखाय लाव पाती गोरी देहौं पिया के हाथ
काहेन कै मैं कागद बनाऊं काहेन कै मस लेउं
काहेन कै मैं लिखनी बनाऊं लिखौ पिया समुझाय
अंचल फारि कै कागद बनाय लेउ नैन कजल मस लेउ
भरूहर काटि तुम लिखनी बना लेउ लिखै पिया समुझाय
</poem>