'''एक'''
जबसे तूने मुझे, मैंने तुझे, छोड़ा।
'''दो'''
अपना-अपना मत, अपना-अपना अभियोग
'''तीन'''
सहसा, अप्रत्याशित, यों ही हुए आत्मस्खलनों को
'''चार'''
नित्य ही
'''पांच'''
हे देवी मां, आज तुम्हारा व्रत टूट गया, कर दो क्षमा
'''छः'''
जाने क्यों आज मैं पहन रही हूं
'''सात'''
तकिये पर पहले गी खुदी-शुभ रात्रि
'''आठ'''
सुना है तुम उसे अपने घर ले आने वाले हो
'''नौ'''
रीते हुए ज़ख्मों को कुरेदना और फिर
'''दस'''
मैंने तुम्हें कभी पूर्णतया नहीं पाया
'''ग्यारह'''
एक लाचारी ही है, जो ढो रही हूं
'''बारह'''
जाने क्यों लगता है मेरी यादें
'''तेरह'''
आफ़िस में प्रमोशन
'''चौदह'''
मैं तो थी ही तुम्हारे घर की निर्वासित
'''पंद्रह'''
एक तपती हुई दोपहर।
'''सोलह'''
हथेलियों पर चुभा-चुभा कर आलपिन।
'''सत्रह'''
बिना खेले हारी हुई बाजी का टीसता एहसास।
'''अठारह'''
आज लाइन चली गयी।
'''उन्नीस'''
कभी शराब में डूबी तुम्हारी काया को
'''बीस'''
सोचती हूं मुन्ने को किसी दूसरे शहर
'''इक्कीस'''
ऐसा नही कि मैं नहीं समझती
'''बाईस'''
उस घर में भला क्यों न उठे बवण्डर।
'''तेईस'''
आफ़िस में सभी की घूरती नज़रें
'''चौबीस'''
बरसते हुए पानी को, खुली खिड़की से