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अछि शरद ऋतुक सौन्दर्य अपनजिनगीकेँ जीव कोना बड़का सबाल भेलनभमे चन्ना चमकय चमचमई सिङरहार फूलक सुगन्धवन-उपवनकेँ कयलक गमगमसबतरि विचारवान लोकक अकाल भेल
वर्षाक पानिसँ अस्त-व्यस्त, संतुलित विकृतिये संस्कृति बनि संस्थापित भेल आइमनुजक सन्तान जेना सबतरि जल-थलबेहाल भेलकुपथ छोड़ि सुपथहिकेँ उचित पंथ कहबा परअपनहि समाङसँ छी अपने हलाल भेलमानवकेँ मानव धकिअयबामे लागल अछि मुदित चित्त सबहक सबतरि, विहुँसय सरमे विकसित शतदलहाय-हाय लोक लेल लोके अछि काल भेलपुरुषाकेँ अरजल धन भसिआयल जाय रहलसोझहिँमे डूबि रहल तकरे मलाल भेल
क्यौ नाचि रहल दय मधुरतालआडम्बर करबालय कर्जा पर कर्जा लयक्यौ गाबि रहल सुमधुर सरगमबाहरसँ खनहन आ भीतर कंगाल भेलकहबा लय हाथक थिक मैल पाँच-सात लाखआनक धन हड़पयमे लोक फर्दबाल भेल
नहुँ नहुँ सिहकय अति सुखद पवननीतिए, मृदुशस्य शशि झुकि करय नमनअनीति बनल पाप कर्म धर्म बनलछथि प्रकृति पहिरने रहित वसन, जनजनक अन्याये न्यायक पद पाबि कय नेहाल भेलस्वच्छताक खाल ओढ़ि अगबे बैमान फड़लतेँ ने अछि देश आ समाजक ई हाल भेल प्रमुदित तनमन
सरिता जल निर्मल भरलसामाजिक सम-पुरलरसता रस विहीन बनल सगरताहि रसक बीच जाति-पाँतिक देबाल भेलपसरल आतंक,बढ़ल द्वेष-भाव अपनहिमेशीतल बसात लागय अनुपमछोटछीन बातहुपर बड़का बबाल भेल
सब पितृकर्मसँ भय निवृत्तकोन राग-ताल भेल, सब देवकर्म दिस भय प्रवृत्तपूर्ण रंग-ताल भेलपूजोपकरण छथि जुटा देशकेर दशा-दिशा ताले बेताल भेलमानव सब रूप बदलि दानव बनि लूटि रहल, मिलिजुलि काली दुर्गा मैया निमित्तदाव-पेँचकर बीच बुधुआ दलाल भेल
शरदे ऋतुमे रावणक पतनत्यागी बलिदानीकेँ आइ बिसरि गेल देशकयलनि मर्यादा पुरुषोतमअहिंसाक भूमि आब हिंसासँ लाल भेलचारिम पन बीति रहल चित्त भेल व्यथित अपनई शरद कयल भूतल शीतल, खंजन आगमनक थिक ई पललतरल ओ चतरल लता गुल्म, नव सोचब कतेक आब जीवन पौलक जीव सकल विहुँसैत कुमुदिनी कुमुदक छविपोखरिकेँ बनबय सुन्दरतमअछि शरद ऋतुक सौन्दर्य अपननभमे चन्ना चमकय चमचमजपाल भेल
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