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अभिमान की सज़ा / कांतिमोहन 'सोज़'
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20:02, 28 मार्च 2015
अन्यों को सुख पहुँचाता ख़ुद को पीड़ा
यूँ बना देवता वो शासक अभिमानी
अब कहो
बालकों
बालको,
कैसी लगी कहानी ?
1967
</poem>
अनिल जनविजय
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