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07:13, 30 मार्च 2015 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=सूर्यदेव पाठक 'पराग'
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धूप-छाँव, हार जीत के मिलान जिन्दगी
बैर-प्रीति, रीति-नीति के बयान जिन्दगी
बा सबेर का किरिन में खूबसुरती भरल
शबनमी उजास में प्रकाशमान जिन्दगी
चाँदनी भरल कबो, कबो प्रचण्ड ताप ले
मेघ से घिरल अथाह आसमान जिन्दगी
काल के कराल भाल पर लिखल सुलेख हऽ
आदमी का कर्म के रचल विधान जिन्दगी
ज्ञान के विलास से हुलास प्रान में भरे
रोज-रोज के कहल कथा-पुरानी जिन्दगी
जन्म के विहान ई, उठान मध्य काल के
साँझ का प्रकाश के हवे ढलान जिन्दगी
</poem>