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07:19, 30 मार्च 2015 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=सूर्यदेव पाठक 'पराग'
|संग्रह=
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<poem>
दुख के नाम-निशान रहे मत, खुशियाली हर ओर
अँधियारा कट जाय अमाँ के आवे विहँसत भोर
मत राधा के जिनगी में आवे मनहूस वियोग
मथुरा-वास करत मत कबहूँ छोड़ किसुन चितचोर
तन से दूर भले कोहू, मत मन से होखे दूर
झलके आँसू खुश भइला के, मत दुखिया के लोर
मेहनत के फल मीठ मिले आ उचित मिले सम्मान
मत टूटे कबहीं केहू के अपनापन के डोर
रात करे मत घात, रूके फइलत तम के वर्चस्व
भीतर-बाहर, नगर-डगर में बढ़ते जाय अँजोर
</poem>