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07:42, 30 मार्च 2015 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=सूर्यदेव पाठक 'पराग'
|संग्रह=
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<poem>
अबो खिलला के पहिले फूल सब मुरझा रहल बाटे
बिना पतवार के नइया अथाहे जा रहल बाटे
बुताइल आजतक ना पेट में लागल जवन अगिया
तबो कुछ लोग जुलुमी जोर से लहका रहल बाटे
झरे ना लोर अँखियन से, ना अइसन रात-दिन कवनो
रोआई देख के कुछ लोग हँस-मुसुका रहल बाटे
कमाई आज तक कइलीं खटाई देह बन सूखल
उपासल हम रहीले केहू बइठल खा रहल बाटे
उमर पचपन के लगभग हो गइल आजाद भारत के
खुलल आकाश में जिनगी गँवावल जा रहल बाटे
भले दुनिया के नजरी में बहुत ऊँचा चढ़त जाईं
अबो शैतान से इन्सान बच ना पा रहल बाटे
इहाँ मौसम बदल जाला तबो हालात ना बदले
भले गरजत बा बादल, जल कहाँ बरसा रहल बाटे
बिना तेले के बाती जर रहल कबसे बा दीआ के
केहू के हाथ झटका से बुतावे जा रहल बाटे
</poem>