Changes

मन्दिर / जयशंकर प्रसाद

No change in size, 08:05, 31 मार्च 2015
<poem>
जब मानते है व्यापी जलभूमि में अनिल में
तारा-षषांक शशांक में भी आकाष आकाश मे अनल में
फिर क्यो ये हठ है प्यारे ! मन्दिर में वह नहीं है
वह षब्द शब्द जो ‘नही’ है, उसके लिए नहीं है
जिस भूमि पर हज़रों हैं सीस को नवाते
Delete, Mover, Reupload, Uploader
2,887
edits