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वन्दना / जयशंकर प्रसाद

3 bytes removed, 06:53, 2 अप्रैल 2015
निर्विकार लीलामय ! तेरी शक्ति न जानी जाती है
ओतप्रोत हो तो भी सबकी वाणी गुण-गुना गाती है
गद़गद़गदगद्-हृदय-निःसृता यह भी वाणी दौड़ी जाती है
प्रभु ! तेरे चरणों में पुलकित होकर प्रणति जनाती है
</poem>
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