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बाल-कीड़ा / जयशंकर प्रसाद

5 bytes added, 11:23, 2 अप्रैल 2015
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हँसते हो तो हँसो खूब, पर लोट न जाओहँसते-हँसते आँखों से मत आश्रु अश्रु बहाओ
ऐसी क्या है बात ? नहीं जो सुनते मेरी
मिली तुम्हें क्या कहो कहीं आनन्द की ढेरी
उपवन के फल-फूल तुम्हारा मार्ग देखते
काँटे ऊँवे नहीं तुम्हें हैं एक लेखते
मिलने को उनसे तुम दौड़े ही जोते जाते होइसमें कुछ आनन्द अनोखा पा जाते हो
माली बूढ़ा बकबक किया करता है, कुछ बस नहीं
जब तुमने कुछ भी हँस दिया, क्रोध आदि सब कुछ नहीं
राजा हा या रंक एक ही-सा तुमको है
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