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विरह / जयशंकर प्रसाद
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16:24, 2 अप्रैल 2015
यह सब फिर क्या है, ध्यान से देखिये तो
यह विरह पुराना हो रहा जाँचिये तो
हम अलग हुए
है
हैं
पूर्ण से व्यक्त होके
वह स्मृति जगती है प्रेम की नींद सोके
</poem>
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