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गान / जयशंकर प्रसाद
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07:13, 3 अप्रैल 2015
<poem>
जननी जिसकी जन्मभूमि हो; वसुन्धरा ही काशी हो
विश्व स्वदेश,
भ्रातु
भ्रातृ
मानव हों, पिता परम अविनाशी हो
दम्भ न छुए चरण-रेणु वह धर्म नित्य-यौवनशाली
सदा सशक्त करों से जिसकी करता रहता रखवाली
सशुल्क योगदानकर्ता ३
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