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05:56, 4 अप्रैल 2015 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=प्रवीण काश्यप
|संग्रह=विषदंती वरमाल कालक रति / प्रवीण काश्यप
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<poem>
स्त्री हँसैत अछि हमर तनाव मे,
स्त्री कनैत अछि हमर बिखराव मे;
स्त्री बहि जाइत अछि बहाव मे
स्त्रीक समय ठहरि जाइत अछि
हमर रक्तक सुनिपात में!
</poem>