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मोस / प्रवीण काश्‍यप

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|संग्रह=विषदंती वरमाल कालक रति / प्रवीण काश्‍यप
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<poem>
मनुक्खक रक्त पीबैत-पीबैत
मोसक चरित्र भऽ गेल मनुक्ख सन!
संतोष नहि छै एकरा
कतेक पीब ली रक्त
एक्के बेर!
की पता फेर नहि भेटतै अवसर?
एक्के बेर शोणित पीब कऽ
परि रहैछ एकात
मठोमाठ भऽ कऽ।
ने उठल ने बैसल होइछै
तैयो चाही शोणित!
तैयो मारत डंक!
लपलपाइत छैक जीह
रूधिरक स्वाद लेल!
भूक्खर क्षुद्र लोकक रक्त पीने
मोस भऽ गेल मनुक्खे सन!
</poem>
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