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12:40, 4 अप्रैल 2015 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=प्रतिभा सक्सेना
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|संग्रह=
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<poem>
आती है एक लड़की,
मगन-मुस्कराती,
खिलखिलाकर हँसती है,
सब चौंक उठते -
क्यों हँसी लड़की ?
*
उसे क्या पता आगे का हाल,
प्रसन्न भावनाओं में डूबी,
कितनी जल्दी बड़ी हो जाती है,
सारे संबंध मन से निभाती !
कोई नहीं जानता,
जानना चाहता भी नहीं
क्या चाहती है लड़की .
मन की बात बोल दे
तो बदनाम हो जाती है लड़की .
*
और एक दिन
एक घर से दूसरे घर,
अनजान लोगों में
चुपचाप चली जाती है .
नाम-धाम, पहचान सब यहीं छोड़,
एकदम गुमनाम हो जाती है लड़की.
निभाती है जीवन भर
कभी इस घर, कभी उस घर .
देह में नई देह रचती
विदेह होती लड़की.
*
सब-कुछ सौंप सबको
नये रूप, नये नाम सिरज,
अरूप अनाम हो,
झुर्रियोंदार काया ओढ़
हवाओं में विलीन हो जाती.
कोई नही जानता,
यही थी
वह हँसती-खिलखिलाती,
नादान सी लड़की!
*
</poem>