Changes

बाल विनय 2 / श्रीनाथ सिंह

1 byte removed, 09:47, 5 अप्रैल 2015
इसके नदी पहाड़ वनों पर पक्षी सा मंडराऊं मैं।
इसका नाम न जाये चाहे अपना शीश कटाऊँ मैं,
भूल तुम्हे भी हे परमेश्वर !इसका ही कहलाऊँ मैं।
</poem>