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11:01, 5 अप्रैल 2015 {{KKRachna
|रचनाकार=श्रीनाथ सिंह
|अनुवादक=
|संग्रह=
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<poem>
चाह कुछ सुख की नहीं,
दुःख की नहीं परवाह है।
प्रिय देश के कल्याण की,
हमने गहि अब राह है।
हों क्यों न अंगारे बिछे,
मुँह जरा मोंड़ेगे नहीं।
मिट जायेंगे पर देश का,
अभिमान छोड़ेंगे नहीं।
खाली भले ही पेट हो,
नंगी भले ही देह हो।
सौ आफतें हों सामने,
उजड़ा भले ही गेह हो।
हो देश की जय ,भय नहीं,
हमको जरा है क्लेश का।
बाजी लगा कर प्राण की,
हम साथ देंगे देश का।
</poem>