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सच कहूँ तेरे बिना / शार्दुला नोगजा
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13:37, 8 अप्रैल 2015
आस जैसे सीढ़ियों पे बैठ जाए थक पुजारिन
और मंदिर में
रहें
रहे
ज्यों देव का श्रृंगार बासी
बिजलियाँ बन कर गिरें दुस्वप्न उस ही शाख पे बस
घोंसला जिस पे बना बैठी हो मेरी पीर प्यासी !
Gcgupta
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