वो उम्र क्या हुई वो ज़माने किधर गए
वीराँ हैं सहन -ओ -बाग़ बहारों को क्या हुआ
वो बुलबुलें कहाँ वो तराने किधर गए
उजड़े पड़े हैं दश्त ग़ज़ालों पे क्या बनी
सूने हैं कोह-सार कोहसार दिवाने किधर गए
वो हिज्र में विसाल की उम्मीद क्या हुई
वो रंज में ख़ुशी के बहाने किधर गए
दिन रात मय-कदे मैकदे में गुज़रती थी ज़िन्दगी'अख़्तर' वो बे-ख़ुदी बेख़ुदी के ज़माने किधर गए