गृह
बेतरतीब
ध्यानसूची
सेटिंग्स
लॉग इन करें
कविता कोश के बारे में
अस्वीकरण
Changes
सौन्दर्य लहरी / पृष्ठ - ४ / आदि शंकराचार्य
447 bytes added
,
13:34, 20 अप्रैल 2015
त्वमेव स्वात्मानं परिणमयितुं विश्ववपुषा ।
चिदानन्दाकारं शिवयुवति भावेन बिभृषे ॥३५॥
तवाज्ञा चक्रस्थं तपनशशि कोटि द्युतिधरं ।
परं शंभुं वन्दे परिमिलित पार्श्वं परचिता ॥
यमाराध्यन् भक्त्या रविशशिशुचीनामविषये ।
निरातंके लोको निवसतिहि भालोकभवने ॥
</poem>
Kailash Pareek
514
edits