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सौन्दर्य लहरी / पृष्ठ - ४ / आदि शंकराचार्य
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13:51, 20 अप्रैल 2015
चिदानन्दाकारं शिवयुवति भावेन बिभृषे ॥३५॥
तवाज्ञा चक्रस्थं
तपनशशि
कोटि द्युतिधरं ।परं शंभुं वन्दे
परिमिलित
पार्श्वं परचिता ॥यमाराध्यन्
भक्त्या
रविशशिशुचीनामविषये ।
निरातंके लोको निवसतिहि भालोकभवने ॥
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