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धरतीक गीत / नरेश कुमार विकल

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<poem>
आँचर सँ झलकै पुष्प पीत।
गाबि रहल धरतीक गीत।

मखमल कें कयने श्रृंगार
वासन्ती-पुलकित बयार
कुसुमित-द्रुमदल आइ
पहिरि रहल सोनाक हार

मधुऋतु फेर गेल जीत।
गाबि रहल धरतीक गीत।

मज्जर मे केहेन सुगन्ध
कस्तुरी हाथ दुनू बन्द
लाल-लाल टेसूक फूल
सुनाऽ रहल ताल आओर छन्द

बिसरल किऐ पहु प्रीत?
गाबि रहल धरतीक गीत।

घोरि रहल कुंकुम दिन
टेरि रहल वासन्ती वीन
भौंरा अछि झूमि रहल मस्त
तड़पि रहल पानि मे मीन

करियाही राति गेल बीत
गाबि रहल धरतीक गीत।
</poem>
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