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चानक चोरी / नरेश कुमार विकल

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<poem>
कोशी कानथि करूण कोर सँ
कमला कानथि भोरें सँ
चानक चोर बुझा हमरा कि-
हेतै इजोरिया तोरे सँ ?

आंगन में तुलसी चउराक
दीप मिझाएल ककरा सँ ?
मन्दिर सून, सून चउबटिया
फूल सुखाएल ककरा सँ ?

ककरा बिना वसन्त ने आओत
कानत कोइली नोरे सँ
चानक चोर बुझा हमरा कि-
हेतै इजोरिया तोरे सँ ?

किए कुमुदिनी मुँह नुकौने
कमल नुकौने पोखरि मे
आगि लगौलें आँचर मे
आ‘ धरतीक हरियर चुनरि मे।

मायक ममता आओर सेहन्ताक
कोर भरल अंगोरे सँ।
चानक चोर बुझा हमरा कि-
हेतै इजोरिया तोरे सँ ?

चानक शव कें बेचि-बेचि
नेना पर कफन ओढ़ौने छें
भरल वसन्त मे आगि लगाकऽ
श्मशान बनौने छें

चान-सुरूज कें केओ नहि रोकत
चमकि रहल छथि ओरे सँ।
चानक चोर बुझा हमरा कि-
हेतै इजोरिया तोरे सँ ?
</poem>
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