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11:35, 25 अप्रैल 2015 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=प्रेमजी प्रेम
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<poem>
खुलता होटां पै
ऊंदी हथेली का दूनो
धरर
बरसां सूं
रोकबो छावूं छूं
पण
बार बार
बारै खड ज्या छै,
‘‘आता-आता’’,
‘‘घणी खम्मा-घणी खम्मा’’।
तू सरजन छै
तौ आ
म्हारा होटां पै लगा दै
टांका।
डरपै मत
कै
भीतर रहबा सूं
म्हारो पेट फुला देगा
‘‘आता’’, ‘‘घणी खम्मा’’।
जमाना भर में
‘‘आता-आता’’
‘‘घणी खम्मा-घणी खम्मा’’
करबा सूं
पेट को फूलबो
भलो छै
म्हूं बकरबो न्हं छांवूं
नाक की धूं कणी
फुला फुला’र
बारै खाडबो छांवू छूं
पीढ्यां को लावो।
ईं लावा की लाव में
भसम करबो छांवूं छूं
‘‘आता’’ अर ‘‘घणी खम्मा’’।
</poem>