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09:44, 30 अप्रैल 2015 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=मालचंद तिवाड़ी
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<poem>
हुय सकै चिना’क
पुहुप री पांखड़ियां जितरा
कै अणथाग
किणी म्हैल में चिचिया भाटां जितरा-
सबद थारै अर म्हरै बिचाळै।
नीं बणै पुहुप
नीं म्हैल
अेड़ा अरथ-बिहूण सबदां रौ आपां कांई करां ?
इणी सांतर
म्हैं नीं दीन्यो उपहार में सबद-कोस थनै।
इणाी सांतर
म्हैं बावड़ जाऊं घणी दफै
अबोलो थारै आंगणै सूं।
</poem>