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09:46, 30 अप्रैल 2015 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=मालचंद तिवाड़ी
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<poem>
बिरहण है अग्नि
बाट जोवती-
जळ री।
जळ जोगी
बावड़ै पाछो
अलख जगा’र
नैणां-देवरी सूं ई
बिरहण री।
</poem>
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