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16:49, 30 अप्रैल 2015 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=निशान्त
|संग्रह=धंवर पछै सूरज / निशान्त
}}
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<poem>
इसै काळ में ई
बो मोड़ग्यौ
पीसा
जे बो नीं हुंवतो
रिस्तै में छोटो
म्हैं बीं रै
पगां लागतो
अचरज हुवै-
काळ में बीं कनै
कठै सूं बापरया
पीसा।
</poem>