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औड़ी में / निशान्त

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<poem>
दिन में
जका डांगर
मारै हा अेक-दूजै रै सींग

पौ’री रात में
जुड़्या बैठ्या है
दरख्तां तळै भेळा

गायां गेर राखी है
नाड़ सुअरां ऊपर।
</poem>
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