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17:03, 30 अप्रैल 2015 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=निशान्त
|संग्रह=धंवर पछै सूरज / निशान्त
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<poem>
मेहां रै पछै
रूंख
लदीजग्या है
पŸाां-फूलां सूं
खेत भरीजग्या है
लीली छम फसलां सूं
बै ’वण लाग्यौ है
ठण्डो बायरो
आभै सूं टपकण लाग्यौ है
इमरत-सो
हां ! इस्यै
ठण्डै-मीठै
दिनां वास्तै ई तो
सयौ हो
जेठ रो
तातो तावड़ो
लाय-सी लगांवणौ
बायरो।
</poem>
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