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बंगलो अर खाली जिग्यां / निशान्त
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<poem>
बंगलो है बां रौ जबरो
पण आथण-दिनगै
बांनै
उण रै आगै
दो-च्यार हाथ जिग्यां में
बैठ्यां बिना
नीं सरै।
</poem>
आशिष पुरोहित
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