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09:34, 3 मई 2015 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=कुमार सौरभ
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<poem>
ज़िन्दगी जूझ रही होती है मौत से
वह जूझ रहा होता है सड़क, ट्रैफिक, रफ़्तार और
सबसे ज्यादा ख़ुद से
स्टेयरिंग, गेयर, ब्रेक से जुड़ी
उसकी हर एक गतिविधि से
जुड़ी होती है
किसी की जिन्दगी की रफ़्तार
उसने देखा है
हवा सूँघने वाली कई देहों को
लाशों में बदलते हुए
घर पर- उसे खाना नहीं रूचता
बीबी से अच्छी तरह बतिया नहीं पाता
बच्चों को मन भर दुलार नहीं पाता
रातों को-
साँसे ज़ोर से चलने लगती हैं
छाती तेजी से उठने गिरने लगती है
पत्नी घबराकर जागती है
पति को झकझोरती है
साठ..अस्सी..नब्बे..तेज़..तेज़..तेज़..और तेज़.. !
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