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09:49, 4 मई 2015 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=निशान्त
|संग्रह=धंवर पछै सूरज / निशान्त
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<poem>
काढ़-काढ़ ठूंड
बणांवतां जमीन
नीं आयो हुसी
ताण इत्तौ,
जित्तौ कै म्हानै आवै है
कोर्ट-कचेड़्यां गेड़ा खाय’र
उण नै आपरै
नांव चढ़ांवतां।
</poem>
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