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|संग्रह=धंवर पछै सूरज / निशान्त
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<poem>
बस चाली नै
आध-पोण घण्टो ई होयो हो
अर इत्तो ई टेम
और लागणो हो बीं सफर में

बां खोल लियो टिफन
टाबरां ल्याड़ लिया हाथ
साग में
कन्ने बैठ्यो म्हैं डर्यो
अर टोक्या बानै-
थे इत्ता मोड़ै बस में चढ्या
फेर ई भूखा ?

बां कैयो-
टाबर मानै कोनी
घरां खावै कोनी
पण ओ कोई
पुख्ता पड़ूतर नीं हो

म्हैं देख्यो-
टाबरां थोड़ो अर बां घणो खायो
छोटियो टाबर तो साफ नटै हो
बै बीं रै मूं में
धिगांणै गासिया देवै हा।
</poem>
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