800 bytes added,
10:03, 4 मई 2015 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=निशान्त
|संग्रह=धंवर पछै सूरज / निशान्त
}}
{{KKCatKavita}}
{{KKCatRajasthaniRachna}}
<poem>
आथण पौर
मजूरी मांगण सारू
दो मजूर आया
सैठ री दुकान
अेक, जकै चिणी ही भींत
बड़्यो
संकतो-संकतो
कनै पड़ी कुरसी छोड़’र
बैठ्यो तळै
जित्ता दिया
बित्ताई ले लिया
दूजो हो पल्लेदार/युनियन रो पल्लेदार
पूरै ठरकै सूं ली
उण बोर्यां री ढुआई।
</poem>