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|संग्रह=धंवर पछै सूरज / निशान्त
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<poem>
मांगणै पर/कीं री
पीसै स्यूं इमदाद करणी
म्हारै सारू कोई बड़ी बात नीं ही

अेक दो बर तो माया
खुलै हाथ ई लुटाई
पण अब म्हैं
बणग्यो हूँ
पीसै रो पूत

कित्तो गिरा दियो म्हनै
म्हारी जरूरतां
</poem>
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