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10:25, 4 मई 2015 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=निशान्त
|संग्रह=धंवर पछै सूरज / निशान्त
}}
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<poem>
पिछलै साल
कम लागी-
निमां रै निमोळ्यां
कीकरां रै पातड़ियां
काकड़िया-मतिरियां
री नास्त हुगी
अबकाळै कई दिनां सूं
देखूं-
लागण नी लागर्यो
कठैई कोई
सैत-माखियां रो छातो
कांई ईयां ईं
गायब हुवंती जासी
आपणै बिचाळै सूं
आच्छी अर
मीठी चीजां।
</poem>
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