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10:26, 4 मई 2015 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=निशान्त
|संग्रह=धंवर पछै सूरज / निशान्त
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<poem>
ताती लुवां चाली तो
घणकरी’क चीजां
साथ छोडगी
हरी तरकारियां
घटगी
थुड़ग्यो
गायां-भैंस्यां रो दूध
झीणी हुगी
कई रूंखां री छियां
घटगी बिजळी
घटग्यो पाणी
साची कैयो है-
बुरै दिनां में
सो की खुटज्यै
बच्यो रैयज्यै/कठै-कठै ई बस
अेक धीजौ
</poem>
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