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10:29, 4 मई 2015 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=निशान्त
|संग्रह=धंवर पछै सूरज / निशान्त
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<poem>
घणी दोरी आ
लेवण नी द्यै
आदमी नै औसाण
पण गिणती में
नी आवै
ठावा-ठावा
कामां री
रूत हुवै
दिन हुवै
पण आ तो
उग्यै दिन ई
त्यार रैवै।
</poem>
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