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10:38, 4 मई 2015 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=निशान्त
|संग्रह=धंवर पछै सूरज / निशान्त
}}
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<poem>
अठै
जित्तो ई
माड़ो है
खारो है
आछो है
क्यूंकै,
जी दोरो
नीं हुसी
अंत समै
छोडतां।
</poem>
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