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10:44, 4 मई 2015 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=निशान्त
|संग्रह=धंवर पछै सूरज / निशान्त
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<poem>
लारलै दिनां
हुयौ पंचायती-चुणाव
पांच-च्यार
भाई-बेली
हुया खड़्या
सोच्यो-
किणनै करां निराज
किणनै राजी ?
ईं वास्तै
सगळां नै ई कैयो-
देस्यां
पछै आ बात गोखी
तो निगै आयो-
ओ क्यां रो चुणाव
ओ तो है
झूठ रो पाठ।
</poem>
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