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फरक / निशान्त

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|संग्रह=आसोज मांय मेह / निशान्त
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<poem>
कस्बै स्यूं
सै‘र अेक दफ्तर गयो
बस में
मारग मांय आया
गांवां रा घणा अड्डा
लोग चढया उतरया घणां ई
घणा ई ऊभा हा
अड्डां पर सै रा सै हा
मुचेड़ा-चुसेड़ा सा
कम गाभां में
ठंड स्यूं बांथेड़ो करता
इन्नै सै‘र मांय
दफ्तर अर
कलेक्टरी रै
आळै -दुआळै
सारां रा चैरा
करै हा पळपळाट
ओ फरक
कद अर कियां
मिटलो
मिटलो भी कै
नीं मिटलो ?
</poem>
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