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06:09, 9 मई 2015 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=निशान्त
|अनुवादक=
|संग्रह=आसोज मांय मेह / निशान्त
}}
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<poem>
बै खेतां मांय
निपजै तो ई खावै
आपां बाकी रा सै
लूटां
पहाड़
जंगल
नदी
समंदर
धरती री कूख
टर सागै-सागै
बानै भी ।
</poem>
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