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आपां / निशान्त

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|संग्रह=आसोज मांय मेह / निशान्त
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<poem>
घाभां जूत्यां तांई तो
कोई बात नीं ही
पण आपां तो
अेक साल मांय
दो-दो नूंवा साल
मनावण लागग्या
कई दौलड़ी रीतां
निभावां
फेरा श्ी करावां
अर जैमाळा भी पैरावां
‘वेलेंनटाइन डे‘ भी मनावां अर
गणगौर भी पूजां
अै रैया न बै
आछा भिसळ्या आपां
का आपणै होगी
पीसां री बफराई
बियां कीं मजूर नै
मजूरी चुकांवता तो आपां
दो पीसा कमती देवण री ई
नीत राखां ।
</poem>
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